Tuesday, October 29, 2013

Fitrat.......

ज़िंदा रेह्ते हैं जिस ज़मीन के लिये बहाकर ख़ून ,

मर के  उसी मे मिल जाते हैं ,

एक पत्थर को पूजकर पाते हैं सुकून ,

पर इंसानों के साथ इंसानियत भूल जाते हैं ,

आगे  बढ़ने का होता है यों जूनून ,

कि  अपनों का भी दामन छोड़ जाते हैं ,

कैसी अजीब है इंसानो कि फितरत ,

अंजानी चाहतों के पीछे भागने मै मशगूल ,

ज़िन्दगी का हाथ थामे बिना ,

मौत कि बाहों मे झूल जाते हैं। 

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