ज़िंदा रेह्ते हैं जिस ज़मीन के लिये बहाकर ख़ून ,
मर के उसी मे मिल जाते हैं ,
एक पत्थर को पूजकर पाते हैं सुकून ,
पर इंसानों के साथ इंसानियत भूल जाते हैं ,
आगे बढ़ने का होता है यों जूनून ,
कि अपनों का भी दामन छोड़ जाते हैं ,
कैसी अजीब है इंसानो कि फितरत ,
अंजानी चाहतों के पीछे भागने मै मशगूल ,
ज़िन्दगी का हाथ थामे बिना ,
मौत कि बाहों मे झूल जाते हैं।
मर के उसी मे मिल जाते हैं ,
एक पत्थर को पूजकर पाते हैं सुकून ,
पर इंसानों के साथ इंसानियत भूल जाते हैं ,
आगे बढ़ने का होता है यों जूनून ,
कि अपनों का भी दामन छोड़ जाते हैं ,
कैसी अजीब है इंसानो कि फितरत ,
अंजानी चाहतों के पीछे भागने मै मशगूल ,
ज़िन्दगी का हाथ थामे बिना ,
मौत कि बाहों मे झूल जाते हैं।
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