Sunday, November 13, 2011

Kahi se phir...............


कही से फिर रात काली चादर ओढ़े आई ,
फिर से सोए गम के बादलों ने ली अंगड़ाई ,
एक और बार सुहानी शाम का दामन छूटा,
कही से फिर एक छोटा सा अरमान टूटा,
फिर से दिल ने थोड़ी सी धड़कन बढाई,
एक और बार डर ने हौले से दस्तक लगाई,
कही से फिर ख्वाइशो मे लिपटा हौसला थोडा लडखडाया,
फिर से पलकों ने अधूरे सपनो की कुछ बूँदें बहाई,
एक और बार जब कोहरा चारो तरफ से उमड़ के आया,
फिर से उम्मीद ने अपनी लौ थोड़ी सी बुझाई ,
पर जब जब ज़िन्दगी ने खुद को इस अँधेरे में अकेला पाया,
आने वाली सुबह के ख्याल से,
कही से फिर होटों पे एक हलकी सी मुस्कान आई ......................